ज्यामिति का एक मूल सिद्धान्त शायद आजकल की विश्लेषणात्मक पत्रकारिता को भा गया है और वो यह है कि दो बिन्दुओं से होकर एक रेखा खींची जा सकती है और यदि तीन बिन्दुओं से एक रेखा खींची जा सकती है तो वे एक रेखा में होंगे और उनसे होकर मात्र एक ही रेखा खींची जा सकती है
मेरा अभिप्राय किसी विशिष्ट ज्यामिति समस्या को सुलझाना नही वरन यह बताना है कि किस प्रकार एकाधिक घट्नाओं को उदाहरण बनाकर एक सामाजिक सिद्धान्त बना दिया जाता है हाल के दिनो मे हुई दो घटनाओं की बानगी देखिये दिल्ली के मुनीरका इलाके में रहने वाली एक लड़्की की हत्या उसके ग्रुह प्रदेश झारखन्ड में हो जाती है पुलिस द्वारा खोजबीन करने पर पता चलता है कि उसके घर वाले उससे विजातीय लड़्के से प्रेम करने के कारण नाराज थे दूसरी घट्ना दिल्ली के मदनगीर (अथवा खानपुर) इलाके की है जहाँ पर उत्तर प्रदेश के कानपुर की रहने वाली एक साफ़्टवेयर एन्जीनियर की हत्या हो जाती है पुलिस खोजबीन में शक उसके मंगेतर पर जाता है
अब इन घटनाओं की साम्यता देखिए शायद आपको समझ न आए पर समाज शास्त्रीय द्रष्टि रखने वाले कतिपय स्तंभकार अथवा विश्लेष्णकारों को कई साम्यताएं दिख जायेंगी जैसे दोनो ही घटनाओं मे प्रेम विजातीय लड़्के लड़कियों के बीच था दोनो ही घटनाओं में लड़का लड़की दिल्ली से बाहर के छोटे शहरों से आये थे, दोनो ही घटनाओं में लड़्की की हत्या हुयी है न की लड़्के की इत्यादि
अब इन घटनाओं से बहुत से सामान्य निष्कर्ष निकाले जायेंगे और स्वभावत: येह निष्कर्ष किन्ही समाज्शास्त्रीय परिकल्पनाओं अथवा मनो-अवरोधों पर आधारित होंगे यदि आपको विश्वास न हो तो किसी भी न्यूज चैनल अथवा समाचार पत्रों की विश्लेषण देख पढ़ लीजिए