Search This Blog


Sunday, June 13, 2010

अपराध की समसामयिक समाजशात्रीयता

ज्यामिति का एक मूल सिद्धान्त शायद आजकल की विश्लेषणात्मक पत्रकारिता को भा गया है और वो यह है कि दो बिन्दुओं से होकर एक रेखा खींची जा सकती है और यदि तीन बिन्दुओं से एक रेखा खींची जा सकती है तो वे एक रेखा में होंगे और उनसे होकर मात्र एक ही रेखा खींची जा सकती है
मेरा अभिप्राय किसी विशिष्ट ज्यामिति समस्या को सुलझाना नही वरन यह बताना है कि किस प्रकार एकाधिक घट्नाओं को उदाहरण बनाकर एक सामाजिक सिद्धान्त बना दिया जाता है हाल के दिनो मे हुई दो घटनाओं की बानगी देखिये दिल्ली के मुनीरका इलाके में रहने वाली एक लड़्की की हत्या उसके ग्रुह प्रदेश झारखन्ड में हो जाती है पुलिस द्वारा खोजबीन करने पर पता चलता है कि उसके घर वाले उससे विजातीय लड़्के से प्रेम करने के कारण नाराज थे दूसरी घट्ना दिल्ली के मदनगीर (अथवा खानपुर) इलाके की है जहाँ पर उत्तर प्रदेश के कानपुर की रहने वाली एक साफ़्टवेयर एन्जीनियर की हत्या हो जाती है पुलिस खोजबीन में शक उसके मंगेतर पर जाता है
अब इन घटनाओं की साम्यता देखिए शायद आपको समझ न आए पर समाज शास्त्रीय द्रष्टि रखने वाले कतिपय स्तंभकार अथवा विश्लेष्णकारों को कई साम्यताएं दिख जायेंगी जैसे दोनो ही घटनाओं मे प्रेम विजातीय लड़्के लड़कियों के बीच था दोनो ही घटनाओं में लड़का लड़की दिल्ली से बाहर के छोटे शहरों से आये थे, दोनो ही घटनाओं में लड़्की की हत्या हुयी है न की लड़्के की इत्यादि
अब इन घटनाओं से बहुत से सामान्य निष्कर्ष निकाले जायेंगे और स्वभावत: येह निष्कर्ष किन्ही समाज्शास्त्रीय परिकल्पनाओं अथवा मनो-अवरोधों पर आधारित होंगे यदि आपको विश्वास न हो तो किसी भी न्यूज चैनल अथवा समाचार पत्रों की विश्लेषण देख पढ़ लीजिए

No comments: