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Friday, September 17, 2010

संभावित दुर्घटना

यदि "कर्मैव सदा सुरुचि बखाना संतही मोहि अगणित जाना " का प्रभाव मेरे विचारो पर नहीं होता तो निश्चित रूप से आज एक वाहन चालकसे भिडंत हों गयी होती जो अपनी मोटर साइकल से मेरी कार का पीछा करते हुए मेरे पास आकर यह बोले कि पिछले मोड़ पर मेरे कार मोड़ने से पीछे आ रही उनकी मोटर साइकल जो अचानक हुए इस प्रकरण को झेलने के लिए तैयार नहीं थी और लगभग एक गड्ढे में जाने को तैयार हों गयी थी बड़ी मुश्किल से संभाली जा सकी ! मेरे माफी माँगने पर उनका गुस्सा ठंडा हुआ पर मुझे अंत तक यह समझ नहीं आया कि इसमें मेरी गलती क्या थी ? वैसे भी आजकल दिल्ली शहर में गड्ढो की कमी नहीं है जो राष्ट्र मंडल खेलों में आने वाले मेहमानों के स्वागत के लिए लगभग तैयार बैठे हैं ! पर मजेदार वाकया तब पैदा हुआ जब उन्होंने अपने हाथो पर बंधी हुयी एक आध पट्टियों की ओर इशारा करते हुए यह बताया कि वे चोटे भी उन्हें इसी प्रकार मोटर साइकल के गड्ढे में जाने से प्राप्त हुयी हैं ! अब मुझे समझ नहीं आया कि उनसे पूछूं कि उनकी मोटर साइकल को बार बार गड्ढे में जाने की क्यों सूझती है पर जैसा कि मर्फी का नियम कहता है कि यदि बुरा होने की संभावना हों तो वैसा होगा जरूर !

1 comment:

ओशो रजनीश said...

बढ़िया लेख .... लगता है दिल्ली वालो को गढ़हे में रहने की आदत डाल लेनी चाहिए .... ......

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