मैं संवेद्नाओं से पूरित हूं, प्रेम से सिंचित हूं
माया मोह से घिरा स्वार्थी भी किन्चित हूं
साहस रख कर भी पथ की दुरूहत से घबराता हूं
पर ना जाने किस शक्ति से प्रेरित आगे बढा चला जाता हूं
हिन्दी के सार्वभौमिक आन्दोलन
रुपी समुद्र में कुछ बूँदे
मेरी ओर से समर्पित करता हूँ!
मेरे लिए यह कहना कठिन है कि भाव
अधिक महत्वपूर्ण है या भाषा,
शिल्प अधिक महत्वपूर्ण है या
कथ्य, इसलिए इन गूढ़ विषयों की
समीक्षा का गुरूत्तर दायित्व
विद्वतजनों पर छोड़कर सामान्य
विचार विनिमय करना चाहता हूँ
और आप सभी सुधी जनों को धन्यवाद
देता हूँ जिन्होने इस चिट्टे को
पढ़्ने के लिए लाग इन किया है
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