टाइम मशीन : तर्क आधारित संभावनाए
हाल ही में एक वैज्ञानिक लेख पढ़ रहा था टाइम मशीन पर । लेख का संपूर्ण विषय टाइम मशीन की संभावना तर्कके धरातल पर तलाश कर रहा था । इस विषय पर कोई संदेह नहीं रहा है कि विज्ञान की संपूर्ण अवधारणा ही तर्कके धरातल पर रखी गयी है। कई महत्वपूर्ण खोजें मूर्त रूप लेने से पहले तर्क की कसौटी पर खरी उतर चुकी थी ।इन खोजों में एक महत्वपूर्ण अध्याय परमाणु बम की खोज का है । अमेरिकी (और कुछ खोजो के अनुसार जर्मन ) वैज्ञानिकों के सफलतापूर्वक परमाणु बम के परीक्षण से बरसों पहले ही आइएन्स्टीन ने पदार्थ के ऊर्जा में परिवर्तनकी भविष्यवाणी कर दी थी। अतः इन आधारों पर टाइम मशीन की संभावना पर विराम तो नहीं लगाया जा सकताहै , पर मूल प्रश्न उन तार्किक आधारों का है जिनका उपयोग टाइम मशीन की संभावना (या असम्भावना) का पतालगाने के लिए किया जाता है । सबसे महत्वपूर्ण आघात टाइम मशीन की अवधारणा पर यह कह कर लगायाजाता है कि वास्तविकता में टाइम मशीन का उपयोग कर कोई भी अपने भूतकाल को बदल सकता है जो कि तर्ककी कसौटी पर खरा नहीं उतरता । इसे एक सामान्य (परन्तु सार्वाधिक उध्रत )उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं । यदिकोई मनुष्य अपने अतीत में जाकर स्वयं के माता-पिता की हत्या कर दे तो उसका जन्म ही संभव हों सकेगा ।परन्तु यह उसके वर्तमान स्वरूप का विरोधाभासी होगा क्योंकि उसने स्वयं ही यह कृत्य (अपना अस्तित्व समाप्तकरने का) किया है । अर्थात टाइम मशीन की अवधारणा स्वतः अंतर्विरोधी होने के कारण स्वीकार्य नहीं है।
परन्तु मेरे विचार में इस तर्क का आधार ही अंतर्विरोधी है । आइन्स्टीन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसारसंसार की समस्त घटनाएं सापेक्ष होती हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि प्रत्येक घटना एक मूल बिंदु के सापेक्ष घटितहोती है। जैसे यदि कोई व्यक्ति चालित वाहन में सवार है तो वह उसी वाहन में सवार अन्य व्यक्ति के सापेक्ष स्थिर हैजबकि वाहन के बाहर खड़े दर्शक के सापेक्ष चालित अवस्था में है । स्वभावतः दोनों व्यक्तियों का आकलन अपनेअपने मूल बिंदु के अनुसार सही है ।
दिए हुई संभावना में अदि कोई व्यक्ति टाइम मशीन पर सवार होकर अपने अतीत की यात्रा करता है और स्वयंअपना अतीत देखता है तो उसका स्थान एक प्रेक्षक जैसा होगा (उदाहरण में दिए हुए प्रेक्षक की तरह) ऐसे में यदिउसे कोई कृत्य करना होगा तो उसका प्रेक्षक का स्तर नहीं रहेगा ।
जैसे यदि कोई चलते हुए वाहन से उतर कर अपने पीछे आने वाले वाहन को देख रहा है तो वह उस वाहन के लिएप्रेक्षक है । परन्तु यदि वह उस वाहन में सवार हों जाता है (उदाहरण में दिए गए कृत्य की तरह )तो उसका प्रेक्षकका स्तर समाप्त हों जाएगा । अतः तर्क स्वयं में अंतर्विरोधी है।
इस परिकल्पना का दूसरा अंतर्विरोध इसका (टाइम मशीन का ) समय के निरपेक्ष गति करना है। वर्त्तमान स्वरूपमें समय के सापेक्ष गति करना संभव है । जैसे यदि कोई टाइम मशीन में सवार होकर के भविष्य में जाना चाहताहै तो प्रथमतः समय की गति से तेज चलना होगा (जो कि तब ही संभव होगा जब प्रकाश की गति से तेज चलनासंभव हों ) क्योंकि समय की गति स्थिर है और समय की गति से तेज चलने पर वर्त्तमान की घटनाएं अलग अलगफ्रेम में दिखाई देंगी । और उनमे प्रवेश करना संभव हों सकेगा ।
अंततः टाइम मशीन की संभावना अकल्पित नहीं होगी यदि उन तर्कों को ढूंढा जा सके जिन पर इसका आधारतैयार हों सके। हों सकता है कि यह किसी अनजानी खोज के बाद संभव हों ।
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Wednesday, February 3, 2010
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2 comments:
MERA MANANA HAI KI KABHI NAA KABHI TIME MACHINE JAROOR BAN JAYEGI. MAINE STEPHEN HOWKINS AUR EINSTEIN KI THEORY, QUANTAM THEORY AUR WARM HOLE THEORY KO ACHCHE SE PADHA HAI. KAFI HARD WORK BHI INPAR KIYA HAI TO PATA CHALA HAI KI TIME MACHINE BANAYA JA SAKTA HAI. LEKIN MERA MANANA HAI KI TIME MACHINE SE HAM BACK ME JAKAR KEWAL DEKH SAKEGE KOI CHANGING NAHI KAR SAKEGE THIK WAISE HI JAISE KISHI FILM KI GHATNAO KO DEKHTE HAI. TO BHI HAM APNE PAST SE KAFI KUCH SIKH SAKEGE. KAI SCIENTIST ISPAR KAAM KAR RAHE HAIN ISHLIYE KABHI NA KABHI TIME MACHINE JAROOR BAN JAYEGI.
Es hisab se to hmare past and future me daily sunlight jata hoga. Hmari life me uska effect kyo nhi hota h.hmari life me kabhi bhi vitamins d ki kmi nhi honi chahiye thi.fir aisa kyu nhi huaa.kya mujhe koi samjha sakta h
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