आज सुबह एक जोक पढ़ रहा था । "संता सिंह की पत्नी अपने ड्राईवर के साथ भाग गयी । किसी ने पूछा अब क्या करोगे संता ने जवाब दिया करना क्या है । अब तो गाडी खुद ही चलानी पड़ेगी । " पढ़ कर हंसी आई और यह भी सोचने का मन हुआ कि संता (या बंता) या उन जैसे अनेक चरित्रों की जरूरत क्यों पड़ती है ? क्या हममे अपने ऊपर हंसने का हौसला नहीं है ? यह तो हम सभी को मानना पड़ेगा कि कामन सेन्स या सामान्य समझदारी (अथवा इसकी अनुपलब्धता ) किसी समूह विशेष का लक्षण नहीं हों सकता है । पर किसी समूह विशेष के साथ ऐसी (मूर्खतापूर्ण ) बातें जोड़ने से दो फायदें होते हैं पहला लक्षित श्रोता को यह समझ आ जाता है कि किसी चरित्र विशेष को ही एक मूर्खतापूर्ण हरकत करनी है (मैं शब्दों के चयन के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ)। दूसरा सामान्य व्यक्ति भी कामन चरित्रों के गिर्द छोटी कहानियाँ या चुटकुले गढ़ लेता है । एक सामान्य सा उदाहरण देता हूँ । उत्तर भारत में अकबर बीरबल के चुटकुले इतने प्रसिद्द हुए हैं कि यह विश्वास करना ही असंभव हों जाता है कि इनमे से कई का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है और यह हम सब के द्वारा ही गढ़े गए हैं।
ऐसे चरित्र अधिकांशतः स्थानिक होते हैं और स्थानीय जरूरतों के अनुसार ही गढ़ लिए जाते हैं जैसे कि यूरोपियन और अमेरिकन माध्यमों में प्रचलित ब्लोंडे । मेरा पूर्ण विश्वाश है कि ऐसे चरित्रों की गवेश्नात्मक खोज कर किसी भी समाज के बारे में अनेक बातों का पता लगाया जा सकता है । यह चरित्र हमें हंसाते हैं गुदगुदाते हैं और चहरे पर मुस्कान लाते हैं । कारण कोई भी हों इनकी उत्पत्ति का हम हमेशा ही इनके आभारी रहेंगे हमें हंसाने के लिए ।
1 comment:
गंभीर चिंतनयुक्त विचारोत्तेजक लेख.
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